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राजस्थान राजा
महराजाओं का गढ़। नाम सुनते ही सबसे पहले सर पे बंधी रंग-बिरंगी पगड़ी, घड़े को
सिर पर घड़ा रखे पानी लेने जा रहीं महिलाएं। जिनके हाथों में हरी-पीली-नीली और
अनेक रंगों की चूड़ियां रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में चमक रही हों। लेकिन जो लोग
राजस्थान नहीं गए हैं उन्हें हमारी फिल्मों ने बहुत कुछ दिखा दिया है इस
रेगिस्तानी सुंदर राज्य के बारे में। लेकिन
अपनी सुंदरता के लिए जाना जानेवाला यह राज्य आज स्वच्छता में कहीं पिछड़ सा रहा
है। खुले में शौच को लेकर लोगों में जागरुकता का अभाव साफ नजर आता है।
राजस्थान के जयपुर और अलवर जिले के गांवों के बाहर सड़कों पर लोगो को
खुले में शौच करते देखा जा सकता है। दिन में छोटे-छोटे बच्चों की संख्या ज्यादा नजर आती है
लेकिन शाम होते ही औरतें, बड़े-बूढ़े हाथ में डिब्बा लिए नजर आ जाएंगे। कोई भी गांव
का सरपंच या प्रधान शौचालयों को लेकर गंभीर नजर नहीं आता है। अलवर जिले के मंगलवास
गांव के रामू झागड़ घर में शौचालय बनवाने की बात को लेकर तंज कसते हुए कहते हैं कि
जिस घर में खाना खाते, हैं सोते-रहते हैं, वहां शौचालय बनवाकर बीमारी को बुलावा
नहीं देना। यहां के लोगों को शौचालय के बारे में इतना भी नहीं पता है कि शौचालय से
बामारी फैलती नहीं बल्कि खत्म होती है। अगर आप किसी से गाँव में इस बारे में बात करेंगे
तो लोग आपको खुले में शौच के फायदे बताने लगेंगे और ये मानने को राजी नहीं होंगे कि
खुले में शौच करना उनकी सेहत लिए अच्छा नहीं है। ऐसे में, यह अपेक्षा रखना कि लोग
अनुदान मिलने पर आसानी से शौचालय बनवाने को राजी हो जाएंगे, पूरी तरह ठीक नहीं
होगा। लेकिन शाम के समय स्त्रियों का शौच के लिए जाना कितना ख़तरनाक हो सकता है, हाल ही में बदायूं में हुआ गैंग रेप कांड इसकी एक बानगी है।
अलवर केमंगलबास
गांव में उच्च प्राइमरी स्कूल बहुत ही सुंदर है। स्वच्छता के सभी मानकों पर सौ
फीसदी खरा उतरता है यह स्कूल। लेकिन यहां की कड़वी सच्चाई यह है कि इस गांव में
स्कूल के अलावा कहीं भी शौचालय नहीं हैं। कक्षा पांच का छात्र अकरम रजा सकुचाते
हुए बताता है हमारे गांव में सरपंच को छोड़कर किसी के घर शौंचालय नही है। इस कारण
स्कूल से जाने के बाद हम शौच के लिए बाहर पहाड़ की तरफ जाते हैं जो बहुत ही खतरनाक
रास्ता है।” ऐसे एक नहीं तमाम गांव हैं जहां
लोग खुले में शौच को लेकर जागरुक नहीं हैं। सरकार नारा दे रही है- “स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय” का लेकिन दोनों की ही
स्थिति अच्छी नही है। यूनीसेफ के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान के ग्रामीण इलाकों
में 73 प्रतिशत जनसंख्या खुले में शौच करती है। राज्य के दक्षिणी जिलों में हालात
और भी भयावह हैं। यह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है जहां की 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी
खुले में शौच करती है। यहां स्कूलों में 73 प्रतिशत शौचालयों का लक्ष्य प्राप्त
किया जा चुका है लेकिन शौचालयों की जमीनी हालत बहुत खराब है। न पानी है, न दरवाजे
खिड़कियां लगी हैं। हाल ही में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 60
करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि 23 प्रतिशत
लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं क्योंकि स्कूलों में शौचालय नहीं होते।
डायरिया के चलते 1000 बच्चे रोज मृत्यु को प्राप्त होते हैं। राजस्थान के बहुत से
स्कूल ऐसे हैं जहां हालत बहुत खराब है। अव्यवस्थाओं के कारण विद्यालय मे पढ़ने वाली
किशोरियों को खुले में शौच जाना पड़ रहा है जिसके कारण अक्सर विषम परिस्थितियाँ भी
बन जाती हैं। हालाँकि बालिकाएं शर्म और संकोचवश खुलकर इस विषय पर अपना विरोध नहीं
दर्ज करवा रहीं लेकिन फिर भी पिछले कई वर्षों से विद्यालयों में शौचालय की
व्यवस्था न होने से बालिकाओं को होने वाली असुविधा को अनदेखा नही किया जा सकता।
खुले आसमान के नीचे शौच जाने की प्रथा को समाप्त करने के मकसद से केंद्र एवं राज्य
सरकारें विशेष तौर पर ग्रामीण अंचल के विद्यालयों में सुलभ शौचालयों और माडर्न
शौचालयों का निर्माण करवा रही हैं ताकि बालक-बालिकाओं को खुले में शौच आदि के लिये
न जाना पड़े। लेकिन ज्यादातर विद्यालयों की व्यवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि
इन विद्यालयों के सुधार के लिए आने वाले शासकीय धन का जमकर दुरुपयोग हो रहा है।
स्वच्छ भारत
अभियान में ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ विद्यालय’ की बात प्रधानमंत्री ने की थी,
जिसका लक्ष्य देश के सभी स्कूलों में पानी, साफ-सफाई
और स्वास्थ्य सुविधाओं का पुख्ता इंतजाम रखा गया। यह अभियान सेकेंडरी स्कूलों में
लड़कियों की एक बड़ी आबादी को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है। शहरी विकास
मंत्रालय ने शौचालयों की उपलब्धता के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार देश में 3.83 लाख घरेलू और लगभग 17,411
सामुदायिक शौचालयों का निर्माण हुआ है। ये आंकड़े दस्तावेजों में भले ही सही हों
लेकिन सर्वेक्षण के अनुसार, जिन स्कूलों में शौचालय हैं,
उनमें से अधिकांश बंद या जाम पड़े हैं। ये शौचालय इस्तेमाल में लाने
योग्य नहीं हैं और खस्ताहाल हैं। हालांकि राजस्थान जैसे राज्य में सरकार यह दावा करती है कि 90 फीसदी शौचालय इस्तेमाल
योग्य हैं।
खुले में शौच करने का कारण ये ही नहीं है कि आम नागरिक
एक शौचालय बनवाने का खर्च वहन नहीं कर सकते क्योंकि भारत में एक शौचालय बनवाने का
खर्च एक मध्यम दर्जे के मोबाइल फोन जितना ता है। आज गरीब से गरीब व्यक्ति के घर
में भी एक या अधिक मोबाइल फोन हैं, लेकिन शौचालय
नहीं है। जबकि भारत सरकार शौचालय बनवाने के लिए अनुदान दे रही है। लेकिन गाँवों
में शौचालय बनवाने के लिए सरकारी अनुदान तो आता है तब लोग सिर्फ अनुदान हड़पने के
लिए शौचालय के नाम पर चारदीवार बनवा लेते हैं और अनुदान मिलते ही शौचालय की जगह
साफ।
स्वच्छता जीवन से जुड़ा जरूरी मसला है और सरकार
को इस बारे में सोचना होगा। शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने विश्व शौचालय
सम्मेलन में कहा था कि ‘भारत में 80
फीसदी बीमारियां जल प्रदूषण की वजह से होती हैं इसलिए स्वच्छता कार्यक्रम लागू
करना बहुत जरूरी है।” सवाल है कि सुंदर राजस्थान क्या खुले में शौच के कलंक
को मिटाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लोगों को जागरूक बनाने का अभियान
गांव-गांव, स्कूल-स्कूल और घर-घर ले जाने पर और जोर देगा?
अमित कुमार
हिंदी पत्रकारिता
IIMC
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