केदारकांठा ट्रेक पार्ट-1: अगर जानवर न बोलते तो आज केदारनाथ मंदिर यहीं होता, जानिए केदारकांठा के बारे में सब कुछ


नमस्कार! यह ट्रैवल ब्लॉग भारत की सबसे फेमस विंटर ट्रेक केदारकांठा के बारे में. 5 सीरीज के इस ब्लॉग का ये पहला पार्ट है जिसमें हम आपको केदारकांठा के बारे में बता रहे हैं. दरअसल केदारकंठ जिसे अक्सर केदारकांठा (Kedarkantha) भी कहा जाता है वो हमारे उत्तराखंड में हिमालय की एक पर्वत चोटी है. इसकी ऊँचाई 12,500 फीट है. ये बेहद ही खूबसूरत जगहों में से एक है. खास बात ये है कि केदारकांठा उत्तरकाशी जिले में गोविंद वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है जहां तरह-तरह का खूबसूरती देखनो को मिलती है. काफी दिनों के इंतजार के बाद उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में पड़ने वाली इस 'केदारकांठा ट्रेक' जाने का अवसर मिला. 



भारत की सबसे फेमस विंटर ट्रेक में से एक है. गोविंद वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में पड़ने वाली इस ट्रेक की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. सर्दियों में देहरादून से मसूरी होते हुए सांकरी गांव तक पहुंचना आसान नहीं है. लेकिन ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा हम सोच कर गए थे. दरअसल केदारकांठा ट्रेक सांकरी गांव से शुरू होती है. इसलिए इस ट्रेक पर जाने वाले टूरिस्ट के लिए इस गांव में पहुंचना होता है. इस गांव के बारे में अगले पार्ट में बात करेंगे. फिलहाल अभी केदारकांठा के बारे में बात करते हैं. 


केदारकांठा- 'केदार' मतलब भगवान शिव और 'कंठ' मतलब गला अर्थात भगवान शिव का गला. वैसे तो केदारकांठा को लेकर बहुत सारी मान्यताएं हैं लेकिन जिसकी बात सबसे ज्यादा होती है वो ये है कि यह मूल केदारनाथ मंदिर था. दरअसल भगवान शिव हिमालय में रहते थे. पहाड़ों में कई शिव प्राचीन शिव मंदिर हैं और उनका मिथ महाभारत से जुड़ा हुआ है. महाभारत युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव से आशीर्वाद लेने के लिए हिमालय गए. लेकिन भगवान शिव उनसे मिलने नहीं आए. बल्कि उन्होंने भैंस (लोग बैल भी बताते हैं) का भेष धारण किया और पांडवों को गुमराह करने लगे. तभी भैंसों के झुंड को देखकर भीम ने एक चाल चली. वह दो चट्टानों पर पैर फैलाकर खड़े हो गए. सभी भैंस भीम के नीचे से गुजरने लगीं. लेकिन एक भैंस (जिसका रूप शिव जी ने धारण किया हुआ था) ने भीम के पैरों के नीचे से निकलने से मना कर दिया और नतीजा निकला फाइट! इस लड़ाई में, भीम ने भैंस को टुकड़ों में बांट दिया. जिस स्थान पर ये टुकड़े गिरे पांडवों ने बाद में पूजा करने के लिए वहां पर शिव मंदिरों का निर्माण किया.


लोकल किवदंतियों के अनुसार, जब ये मंदिर बन रहा था तो यही असली केदारनाथ मंदिर होने वाला था लेकिन जब मंदिर बन रहा था तभी अचानक गाय की आवाज आ गई. जैसा कि हम सबको पता है कि भगवान शिव शांति में ध्यान लगाते हैं. इसलिए यहां के जानवरों की आवाजों से शांति भंग होने के डर से भगवान शिव वहां से चले गए और केदारनाथ जाकर बस गए. तब तक ये मंदिर भगवान शिव के गले तक बन चुका था इसलिए इसे केदारकंठ या केदारकांठा कहा जाता है. यहां पहुंचने के लिए करीब 12 किलोमीटर की ट्रेक करनी पड़ती है. जोकि तीन से चार दिन में समिट तक पूरी होती है. 


तो ये तो थी जानकारी केदारकांठा के बारे में. अगले पार्ट में हम जानेंगे कि वो गांव जहां से केदारकांठा की ट्रेक शुरू होती है वो कैसा है और वहां बिना इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क के जीवन कैसा है? तब तक इसे शेयर कीजिए. 












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