भारत में मजदूर होना एक त्रासदी है

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भारत में मजदूर होना एक त्रासदी है. सरकार विदेशों में फंसे लोगों को लाने के लिए दिन रात एक कर दे रही है लेकिन अपने ही देश में फंसे मजदूरों को उनके ही हाल पर छोड़ दिया है. अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं तो आए दिन मजदूरों की परेशानी के ऐसे तमाम वीडियो देखने को मिल रहे होंगे जिन्हें देखने के बाद इन चुनी हुई सरकारों पर गुस्सा के सिवाय और कुछ नहीं आता. पहले मजदूरों से किराया बसूलने का पूरा स्कैंडल सामने आया. जब मामले न तूल पकड़ा तो सरकार ने झुनझुना बजाकर सब्सिडी के नाम पर इतना शोर किया कि सब शांत हो गए. लेकिन देश के हर कोने से अभी भी मजदूरों से किराया लिए जाने की खबरें आ रही हैं. कोरोना के साथ-साथ देश में मजदूर त्रासदी चल रही है जिस पर सरकारें उतना ध्यान नहीं दे रही हैं.


सरकारों को डर है कि मजदूरों के आवागमन से कोरोना और तेजी से फैल सकता है. डर जायज है. इस डर को देखते हुए मजदूरों तो क्वारंटाइन करने के लिए उनके गांव के स्कूलों और पंचायतों में रखे जाने की व्यवस्था की गई है. अब जरा सोचिए. इसी देश में कोटा से आए छात्रों को अपने खुद के घरों में खुद को क्वारंटाइन करने की इजाजत है. उनके लिए कसी तरह का कोई स्कूल या पंचायत घर को आइसोलेशन सेंटर नहीं बनाया गया है. ऐसा क्यों? क्योंकि मजदूर हैं उन्हें कैसा भी खाना दोगे खा लेंगे. बेचारे क्या ही शिकायत करेंगे. कई वहां से निकल-निकल कर भाग जा रहे हैं. क्या करें अगर भागें न! सबको पता है कि क्या खाना दिया जा रहा है और किस हालत में रखा जा रहा है. इस संकट में जब सब एक होकर लड़ रहे हैं तो मजदूरों के साथ दोहरा रवैया क्यों?

कोविड-19 महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित उद्योगों को मदद देने के मकसद से उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें अगले तीन साल के लिए श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है. इससे मजदूरों को शोषण और बढ़ेगा. अर्थव्यवस्था और निवेश को पुनर्जीवित करने के नाम पर सरकार ने दिखा दिया कि मजदूरों के लिए उनका क्या प्लान है!

बिहार के मजदूरों को वापस तेलंगाना भेजा जा गया है. राज्य सरकार अपने इस कदम से खुश है. मजदूरों का कौशल सर्वे कराकर उन्हें रोजगार देने का दावा करने वाली सरकार मजदूरों को वापस भेज रही है तो ऐसी क्या मजबूरी सामने आ गई?

अपने बच्चों को गोद में लिए मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल जाने के लिए निकल हाईवेज पर पड़े हैं. लेकिन वो सही सलामत पहुंच जाएं इसकी कोई गारंटी नहीं है. इस त्रासदी का दंश मजदूरों के साथ-साथ उनके बच्चे भी झेल रहे हैं. इस बात का बहुत ज्यादा डर है कि इन बच्चों का भविष्य किसी हाईवे पर अधूरे सफर में ही दम न तोड़ दे!

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी की चपेट में आने से 16 प्रवासी मज़दूरों की मौत हो गई. इन मौतों की जिम्मेदार सरकार है. ये मजदूर औरंगाबाद के पास जालना की एक स्टील फैक्ट्री में काम करते थे. ये लोग जालना से भुसावल की तरफ जा रहे थे. क्योंकि उन्हें बताया गया था कि भुसावल से ट्रेन मिल जाएगी.

अब ट्रेन किसी के द्वारे पर तो पहुंच नहीं जाएगी. ऐसे में आपको जाना स्टेशन पर ही पड़ेगा. लेकिन मजदूरों को स्टेशन तक पहुंचाने के लिए क्या व्यवस्था है? चलते-चलते बेचारे थक गए होंगे. सोचा होगा थोड़ा आराम कर लेते हैं. लेकिन उन्हें क्या पता था कि सरकारी मौत उनके लिए इंतजाम करके निकल चुकी है. पटरियों पर पड़ीं मजदूरों के खून से रंगी वो रोटियां इस त्रासदी का प्रतीक हैं. रोटियां अब खून मांग रही हैं.

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