#HappyBirthdayPelé : किस्सा पेले की जिंगा स्टाइल का, जिसने बदल दिया फुटबॉल का स्वरूप

#HappyBirthdayPelé

ये सब 16वीं शताब्दी की शुरुआत की बात है। अफ्रीकन गुलामों के साथ पुर्तगाली ब्राजील आए। लेकिन अफ्रीकियों ने अपने इरादे बेहद मजबूत कर लिए थे। और बहुत से लोग जंगल की तरफ भाग गए। खुद को बचाने के लिए भागे हुए गुलामों ने लड़ने के लिए एक तरह की मार्शल आर्ट.. कपोइरा (Capoeira) की बुनियाद जिंगा (Ginga) को सीखा। गुलामी का अंत करने के बाद वो लोग जंगल से बाहर आ गए। लेकिन इसके बाद कपोइरा को हर जगह गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। उस समय उन्हें जिंगा की प्रैक्टिस के लिए फुटबॉल ही सबसे अच्छा तरीका लगा। यहां उन्हें कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता था। क्योंकि फुटबॉल में जिंगा का इस्तेमाल करने से किसी को कोई नुकसान नहीं होता। ये जिंगा की सबसे अच्छी फॉर्म थी। और इस तरह जिंगा का विकास हुआ और अपनाया गया।



जिंगा हर ब्राजीलियन की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। लेकिन 1950 के वर्ल्ड कप में उरुग्वे के हाथों हार जाने के बाद बहुत से लोगों ने ये माना कि उनकी हार का कारण जिंगा स्टाइल है और वे अफ्रीकन विरासत से जुड़ी हर चीज के खिलाफ हो गए। 1950 के वर्ल्ड कप फाइनल को लेकर काफी किस्से हैं।

जब पेले को 1958 वर्ल्ड कप के लिए चुना गया था तो उनके कोच भी उन्हें जिंगा खेलते देख परेशान होते थे। वे पेले को जिंगा स्टाइल खेलने से इनकार करते थे। नतीजा ये निकलता की पेले ट्रेनिंग में गोल करने में असफल रहते और संघर्ष करते दिखते। एक बार तो पेले ने अपना बोरिया बिस्तर समेटा और वापस जाने लगे लेकिन स्टेशन पर उन्हें वाल्डमेर डी ब्रिटो ने समझाया मनाकर उन्हें वापस लाए। वाल्डमेर डी ब्रिटो ने पेले से तब कहा था कि तुम्हारे अंदर जिंगा काफी मजबूत है। अगर तुम उसे बाहर ला सकते हो तो वे फिर आगे कुछ देखेंगे।


पेले को झुग्गियों से खोजने और तराशने का पूरा क्रेडिट वाल्डमेर डी ब्रिटो को ही जाता है। खैर...पेले के अंदर जिंगा मजबूत होने के पीछे एक कारण ये भी है कि वे अपनी मां की तरह लोगों के टॉयलेट्स साफ करना नहीं चाहते थे और फुटबॉल खेलकर उस 'गंदगी' से बाहर निकलना चाहते थे। इसलिए पेले अपने पिता के साथ मैंगो के जरिए फुटबॉल की प्रैक्टिस करते थे। 1958 वर्ल्ड कप में उदय हुआ पेले नाम का सूरज कभी भी अस्त नहीं हुआ।


फुटबॉल को वैश्विक स्तर पर ले जाने का क्रेडिट पेले को जाता है। 1958 विश्वकप में इस 17 वर्षीय खिलाड़ी ने फुटबॉल की दुनिया में दस्तक दी थी और वहां से पेले पहले ऐसे फुटबॉलर बने जिन्हें दुनियाभर में टीवी पर फुटबॉल का चेहरा बनाया गया। 1970 वर्ल्ड कप का फाइनल, जहां पेले ने ब्राजील को ऐतिहासिक तीसरी बार वर्ल्ड कप जीतने में नेतृत्व किया, वो पहला वर्ल्ड कप मैच था जो टीवी पर कलर में ब्रॉडकास्ट हुआ था। ये वो इमेजेस थीं जिसने इस खेल को "the beautiful game" बना दिया। पेले इसे "o jogo bonito" (एक पुर्तगाली वाक्यांश जिसका मतलब होता है 'सुंदर खेल') बोलते थे। फुटबॉल की दुनिया में jogo bonito पेले ही लेकर आए। इसके पीछे भी काफी लंबी कहानी है। यहां तक कि पेले अपने आप में एक इतिहास हैं.. उनको जानने और लिखने के लिए शब्द कम पड़ सकते हैं। फिर कभी............

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