'लॉयन' जो नाम से कहीं ज्यादा प्यारी फिल्म है

अभी लॉयन मूवी देखी। दिमाग की बत्ती जलाकर रख दी। इंडिया की कहानी से इंडिया के डॉयेक्टर शायद ही ऐसी फिल्म बना पाते। खैर.. कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा.. यह सवाल अभी भी अपने जवाब के लिए तरस रहा है लेकिन मुझे इस फिल्म की शुरुआत में जिस सवाल के जवाब की जरूरत थी वो मिल गया। वो भी बिल्कुल फिल्म खत्म होने के बाद। यह सवाल मेरे ही नहीं बल्कि जो भी देखेगा या देख चुका होगा उसके मन में भी जरूर आया होगा कि आखिर इस फिल्म का नाम लॉयन क्यों रखा गया? न तो फिल्म में कोई शेर है न ही कहीं पर कोई हीरो शेर वाली हरकत करता है फिर भी फिल्म का नाम लॉयन रखा गया। लेकिन कसम से दिल जीत लिया डॉयरेक्टर ने, दरअसल फिल्म का नाम लॉयन रखने के पीछे बहुत शानदार वजह होती है। मैं नहीं बताऊंगा। देखोगे तो फिल्म के अंत में जब क्रेडिट वाली पट्टी चलती है तो उससे पहले बता दिया जाता है कि फिल्म का नाम लॉयन क्यों है।

अब जरा फिल्म की बात करते हैं। लॉयन एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है, जिन सच्चे किरदारों पर फिल्म को बनाया गया है वो भी फिल्म के अंत में दिखाए जाते हैं। वो लड़का उसका परिवार जो पिछले 25 सालों से उसका इंतजार कर रहा होता है। कहानी फिल्म देखने के बाद पता चलेगी। हालांकि मिलने बिछड़ने की कहानी है जो हमारी 90s की फिल्मों में अक्सर होता रहता था। कभी कुंभ जैसे मेलों में बच्चा खोता था तो कभी बड़े शहरों में। हालांकि इसमें सच दिखाया गया है।


सरू ब्राइर्ले (Saroo Brierley) जो एक भारतीय-ऑस्ट्रेलियन बिजनेसमैन हैं की आत्मकथा 'लॉन्ग वे टू होम' पर आधारित फिल्म है फिल्म लॉयन। दरअसल सरू वही लड़का है जो बचपन में अपने परिवार से बिछड़ जाता है। किताब तो मैंने नहीं पढ़ी लेकिन फिल्म में उस सारे अनुभव को गजब तरीके से दिखाया गया है जिसमें वो कैसे झुग्गियों से निकलकर ऑस्ट्रेलिया पहुंचता है। फिल्म में दो सीन ऐसे हैं जो रोंगटे खड़े कर देते हैं। पहला जब सरू की मां (निकोल किडमैन, जिसने गोद लिया था) सरू को बताती है कि आखिर वो क्या कारण थे जिसकी वजह से उसने बच्चे को गोद लिया। दरअसल सरू को लगता था कि उसकी मां के बच्चे हो ही नहीं सकते थे इसलिए उसने सरू को गोद लिया। लेकिन ऐसा नहीं था। सरू का यह भ्रम दूर करने के लिए वो जिस तरह से उसे बताती है कसम से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सलमान रश्दी ने भी इन्हीं दो सीन को फिल्म की जान बताया है।

दूसरा सीन है जब सरू अपने असली परिवार (भारत में) से मिलता है। उसे हिंदी नहीं आती वो इंग्लिश में ही उनसे बात करने की कोशिश करता है। इस सीन को जिस तरह से डॉयरेक्टर ने क्रिएट किया है उसके लिए तो तालियां बजनी चाहिए। 

सनी पवार.. देव पटेल.. दिल जीत लिया दोनों ने। सनी पवार.. फिल्म में देव पटेल के बचपन का किरदार निभाते हैं। क्या एक्टिंग किया है लौंडा। एक फिल्म है 'थैंक्स मां' उसमें बच्चों की इतनी शानदार एक्टिंग देखी थी लास्ट टाइम। ऑस्कर में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नोमिनेट हुए थे देव पटेल हालांकि मूनलाइट वाले महेर्शला अली से हार गए। अली ने भी गजब की एक्टिंग की है मूनलाइट में। एक बॉडी बिल्डर गे को पहली बार किसी फिल्म में देखा। क्या खूबसूरती से अपने रोल को निभाया है अली ने। लॉयन फिल्म के अंत बताया जाता है कि भारत में 80 हजार से भी अधिक बच्चे हर साल खो जाते हैं। वी आर सो लकी.......

एक बात बड़ी अजीब लगती है विदेशी फिल्ममेकर्स की.. पता नहीं भारत से क्या खुन्नस रहती है उन्हें वो हमेशा भारत की गरीबी और गंदगी ही ज्यादा दिखाते हैं। शायद इसी से उनको अवॉर्ड्स के लिए ज्यादा नोमिनेशन मिलते हैं!

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