एक ऐसी फिल्म जिसने रुलाया फिर जिंदगी खुश कर दी

कैंसर से गुरने वाले का दर्द समझना उसके लिए थोड़ा आसान हो जाता है जो चौबीसों घंटे उस मरीज के साथ रहता है नहीं तो इस दर्द को समझना आसान नहीं है। मेरे पिता जी पिछले चार सालों से इसी दर्द को झेल रहे हैं। खैर तो मैं समझ सकता हूं इस समस्या के बारे में। यहां मैं अपनी बात नहीं करूंगा बल्कि एक ऐसी फिल्म की बात करूंगा जिसने मुझे घंटों रुलाया। एक ऐसी फिल्म जिसने मुझे सवा दो घंटों में एक बार भी नजर न हटाने पर मजबूर कर दिया। 




वैसे तो मैं आजकल रोमांटिक लव स्टोरी वाली मूवी देख रहा था लेकिन उस दिन मन किया कि कोई ऐसी फिल्म देखी जाए जो थोड़ी हटकर हो, थोड़ी अलग हो, थोड़ा रुलाए, थोड़ा प्यार जगाए, थोड़ा रोमांस जगाए। वैसे बॉलीवुड में इतनी सारी इच्छाओं से भरपूर फिल्म शायद ही कोई हो। लेकिन मेरी यह इच्छा हॉलीवुड ने पूरी कर दी। मैं बात कर रहा हूं 2014 में आई जोश बून निर्देशित मूवी "The Fault in Our Stars" आपमें से बहुतों ने यह फिल्म पहले देख ली होगी लेकिन मैंने अभी देखी है। 

फिल्म देखने के बाद मैं खुद को रोने से रोक नहीं पाया। एक कैंसर पीड़ित के सपनों को बखूबी साकार किया है इस फिल्म ने। मैं तो कहूंगा कि हर उस व्यक्ति को यह फिल्म देखनी चाहिए जो अपनी जिंदगी से थोड़ा सा भी निराश है। यह फिल्म हर उस व्यक्ति को देखनी चाहिए जिसे लगता है कि उसकी जिंदगी बहुत नीरस है, कुछ बचा नहीं है या उसे लगता है कि जिंदगी बोझिल है। कैंसर जैसी भयानक बीमारी से जूझती उस लड़की की हिम्मत देखकर बड़ा अच्छा लगा। हेजल ग्रेस (Shailene Woodley) से मुझे प्यार हो गया कसम से। वैसे तो मैं फिल्मों को हमेशा क्रिटिक के नजरिए से देखता हूं। लेकिन इस फिल्म को देखते समय मेरा खुद पर कन्ट्रोल नहीं था। डायरेक्टर को इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।


कहानी कुछ इस तरह है कि एक लड़की होती है बेहद खूबसूरत जिसका नाम हेजल ग्रेस (Shailene Woodley) होता है। उसे बचपन से ल्यूकीमिया (कैंसर) होता है। बचपन में एक बार तो कीमोथैरेपी के दौरान ऐसा लगता है कि हेजल मर रही है। उसकी मां उससे कहती है कि "तुम जा सकती हो, डरो मत" फिर अपने पति के सीने से लगकर कहती है "अब मैं कभी मां बन नहीं सकती" यह सीन किसी को भी रुलाने के लिए काफी है। हालांकि हेजल बच जाती है। बड़ी होती है तो एक और बोझ उसके पल्ले पड़ जाता है। अब वो बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के जी नहीं सकती। उसे हर समय एक ऑक्सीजन सिलेंडर कैरी करना होता है।

हालांकि हेजल इतनी खूबसूरती से उसे हैंडल करती है कि पूरी फिल्म में कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि वह सिलेंडर उसके लिए बोझ हो। हां वो थोड़ी उदास रहती है अपनी जिंदगी से, किसी से बात नहीं करना चाहती। उसकी बीमारी के वजह से कोई दोस्त भी नहीं होता है। फिर मां के बहुत कहने पर वह कैंसर पीड़ितों के एक समूह को ज्वाइन करती है। जहां उसकी मुलाकात एक हैंडसम लड़के आगस्टस वॉटर्स (Ansel Elgort) से होती है। लड़का भी गजब होता है। हालांकि उसे बोन कैंसर होता है। डॉक्टर का कहना है कि उसके कैंसर के ठीक होने के 85 प्रतिशत चांस हैं। आगस्टस जब हेजल को देखता है तो उसे उसी पहली टकरार में प्यार हो जाता है। आगस्टस बहुत खुश दिन मिजाज का लड़का होता है उसे दूसरों को हंसाना, उन्हें खुश देखना अच्छा लगता है। कैंसर पीड़ितों के समूह में हेजल रोज जाती है और उसका मन लगने लगता है। उसे आगस्टस से बात करना काफी अच्छे लगने लगा है। हेजल की एक विश होती है, उसे अमस्टर्डम जाना है उस लेखक से मिलने जिसकी किताब की अंतिम लाइन कम्पलीट नही है। वहां ले जाने में आगस्ट्स उसकी मदद करता है। अमस्टर्डम में दोनों का प्यार खूब फलता-फूलता है। एक गौर करने वाली बात है कि हेजल अपने उस ऑक्सीजन सिलेंडर को साथ ऱखते हुए भी इतनी प्यारी लगती है कि दिल करता है उसे हमेशा देखते रहो। हेजल का उस जीवन साथी सिलेंडर के प्रति प्यार न चाहते हुए भी दिख जाता है। अमस्टर्डम में दोनों पति-पत्नी के रूप में डिनर करते हैं। हालांकि डिनर उसी लेखक की सेक्रेटरी ने ऑर्गनाइज करवाया होता है। डिनर के बाद दोनों होटेल के रूम में जाते हैं सेक्स करते हैं। लेकिन मुझे हॉलीवुड की यह पहली ऐसी फिल्म लगी जिसका सेक्स सीन तुम्हें उत्तेजित नहीं करेगा बल्कि उन दोनों के प्यार को महसूस करने का मौका देगा। एक बात बताना भूल गया.. आगस्ट्स का एक पैर कैंसर के चलते आधा कट गया है।

खैर बहुत कोशिशों के बाद सुबह दोनों उस लेखक के पास जाते हैं मिलने। लेखक शराबी होताा है। हेजल उससे जो पूछती है वह नहीं बताता। हेजल नाराज हो जाती है। गाली-गलौज करके दोनों बाहर निकल आते हैं। हालांकि लेखक की सेक्रेटरी काफी अच्छी होती है। वह दोनों को लेखक की तरफ से सॉरी बोलकर मना लेती है और फिर घुमाने ले जाती है..Anne Frank House 

यह सीन फिल्म का मुझे सबसे रुलाने वाला सीन लगता है। जब Anne Frank House म्यूजियम में दोनों अंदर जाते हैं तो हेजल को काफी दिक्कत होत है चढ़ने में। लेकिन हेजल हिम्मत नहीं हारती है और किसी भी तरह सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर चढ़ जाती है। म्यूजियम देखने के बाद दोनों वापस अपने घर आ जाते हैं। घर आने के कुछ समय बाद आगस्ट्स को पता चलता है कि उसका कैंसर दोबारा पूरे शरीर में फैलने लगा है। जब हेजल को यह बात पता चलती है तो दोनों गले लगकर बहुत रोते हैं। कुछ दिनों बाद आगस्ट्स मर जाता है। हेजल किसी तरह खुद को संभालती है। 

मरने से पहले आगस्ट्स अपने उस सबसे करीबी अंधे दोस्त को बुलाकर अपना pre-funeral (मौत से पूर्व अंतिम संस्कार) करवाता है। हेजल, आगस्ट्स और उसा वो अंधा दोस्त मिलकर बहुत कुछ कहते हैं जो किसी की भी आंखे नम कर सकता है। अंत में आगस्ट्स के अंतिम संस्कार में वो लेखक भी शामिल होता है जिससे मिलने दोनों अमस्टर्डम  गए थे। लेखक वेन हेटन हेजल को बताता है कि आगस्ट्स ने उसे कहा था कि वो उसके अंतिम संस्कार में शामिल हो। लेखक अब हेजल को उस किताब के बारे में बताता है जिसके इर्द-गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है। लेखक कहता है कि उसने वो किताब अपनी बेटी के अनुभव पर लिखी है क्योंकि उसकी भी मौत कैंसर से हुई थी।


अब आगस्ट्स मर गया है, हेजल अकेली है हां उसके साथ आगस्ट्स का वो अंधा दोस्त कुछ देर के लिए दिखाई देता है। फिल्म खत्म हो जाती है। खत्म होते-होते तुम्हें इतना कुछ सिखा जाती है, इतना कुछ दे जाती है कि तुम्हें तन्हा जिंदगी कुछ समय के लिए भरी-भरी लगने लगती है। दूसरों की तो पत नहीं लेकिन मुझे रुला दिया इसने।

PS- फिल्म में बहुत कुछ है जिसे शब्दों में लिखना आसान नहीं है। एक बार देखोगे तो पता चलेगा कि मैंने फिल्म के बारे में कुछ भी नहीं लिखा। हां...मुझे यह फिल्म मेरे दिल के करीब इसलिए लगी क्योंकि मेरे पिता जी कैंसर पीड़ित है। और पिछले चार साल से इस दर्द को झेल रहे हैं।

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