अब तो सफेदी लगाकर भी मुंह काला कर सकते हो.. :-D

कल एक बड़ी ही दिलचस्प बात समझ में आई, पहले सुने थे की मुंह कालिख पोतने से काला होता है लेकिन कल एक नया चमत्कार देखने को मिला। अब सफेदी लगाने से भी मुंह काला हो जाता है। और हाँ सफेदी का एक फायदा है वो यह की इसे खुद के मुंह पर लगाओगे तो काला दूसरों का होगा। गांव में हमारे जब किसी रसूखदार से किसी गरीबी का झगड़ा हो जाता है तो वो भी सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहता लेकिन हाँ सफेदी लगाकर मुंह काला करने की जुगत में हमेशा रहता है। लेकिन उसे इतना ज्ञान कहाँ जितना कल टीवी पर टपक रहा था। पिंक मूवी रवीश कुमार को इतनी पसन्द आई थी की फ़िल्म को प्राइम टाइम में दिखाने की डिमांड करने लगे थे। कल की नौटंकी (आप कुछ भी कहो हमारे गांव में इस तरह की वेश भूषा वालों को जोकर कहते हैं। और यह ज्यादातर नौटंकी जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। सो हम ठहरे गांव के गंवार इसलिए हमें वो नौटंकी लगी) भी लोगों को काफी पसन्द आई तो क्यों न एक ढिंढोरा पिटवाकर किसी चौक चौराहे पर दिखाई जाए 40 मिनट का मनोरंजन हो जायेगा। 
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खैर कल से ट्रेंड बदल रहे हैं अभी #बागों_में_बहार_है चल रहा है। जो लोग भी इस स्टेटस को लेकर ट्वीट कर रहे हैं उनमें से अधिक को यही नहीं पता होगा की यह कटाक्ष किस बात को लेकर था। क्योंकि मुझे भी अभी तक कुछ खास समझ नहीं आया। आपको आया होगा तो हो सकता है आप ज्यादा समझदार हैं। ट्रेंड पर क्लिक करके जानना चाहा की इसका मतलब क्या होता है तो जो जाना उसे मैं यहां पोस्ट नहीं कर सकता। क्योंकि वो 18 प्लस की कैटेगरी में आता है। कल की सफ़ेद नौटंकी और भक्तों के बीच में बेचारा अच्छा ख़ासा 'ट्रेंड' पिस रहा है। रवीश भक्त और अंध भक्त दोनों मिलकर 'ट्रेंड' को मार रहे हैं। एक तरफ बहुत बड़ा राजनीतिक संगठन है जिसके भक्तों की भरमार होना लाजमी है लेकिन आप तो एक व्यक्ति हो फिर भी आपके अच्छे खासे भक्त हैं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं भी शायद कभी आपकी इस भक्त कैटेगरी में शामिल था। लेकिन तब मैं पत्रकार बनना चाहता था लेकिन अब 'नहीं हूं'

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जिस तरह से आप कहते हो कि कोई मेरी तरह न बने, या कोई मुझे हीरो न मानें फिर भी लोग आपको मानते हैं। ठीक उसी तरह उधर भी लोग कहते हैं गलत मत करो .... फिर भी सब होता है.....गांव में हमारे लड़ाई होती है तो लोग एक दूसरे को कॉलर ऊंचा करके चिढ़ाते रहते हैं। पिछले दो दिनों से आपका प्राइम टाइम हमें हमारे गांव का ड्रामा रह रहकर याद करा रहा है। खैर.. थोड़े काम की बात करते हैं.... गांव में अगर झगड़ा उधारी को लेकर होता है तो उधार लेने वाला उसे खुद के बच्चों को पीटकर टालने की कोशिश करता है। यहां पर कॉन्सेप्ट वही था लेकिन थोड़े अलग ढंग से प्रस्तुत किया गया। वो कहते हैं चोरी-चोरी और सीना जोरी.... यह किस संविधान में लिखा है कि मीडिया सिर्फ सवाल ही पूछ सकती है...और खुद पर उठे सवालों के जवाब नहीं दे सकती। आज अगर सरकार गलत कर रही है तो उसके खिलाफ बहुत बड़ा तबका आवाज उठा रहा है..जो अंधभक्त #ShutDownNDTV and #ShutDownJNU जैसे हैशटैग को चार दिन तक ट्रोल करा सकते हैं आज उनकी औकात नही है कि वो आपके #IstandWithNDTV or बागों में बहार है.. जैसे आपके बनाए ट्रेंड को गायब करा दें.. और हां जिस तरह से सरकार को किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने का हक नही है ठीक उसी तरह से आपको भी यह कोई हक नही है कि आप दूसरों से सवाल पूंछे और जब खुद की बारी आए तो फिर गुलाटी मार जाएं और ट्रेंड करा दें। ट्रेंड से याद आया कि जब हीरो विलेन को पकड़ लेता है और जान से मारने को आगे बढ़ता है तो उसकी मां कहती है कि बेटा अगर इसे मार देगा तो तुझमें और इसमें फर्क क्या रह जाएगा। ठीक उसी तरह जब कल आप ट्रोलर को लेकर ज्यादा तंज कस रहे थे तो आज यह 'बागों में बहार है' यह क्या है। मतलब आप भी कुछ हद तक उन्हीं की तरह हो रहे है। बाकी जो भी करते हो दिखावा करते हो.... दूसरों से तो खुला खत लिखकर जावाब मांग लेते हो..लेकिन जब खुद से सवाल पूछे जाते हैं..तो.. कभी जवाब में खुला खत नहीं लिखते.....कुल मिलाकर आपने भी यही मान लिया है कि हम सिर्फ सवाल पूछने के लिए ही बने हैं.....बाकी.. हम से न हो पाएगा....मीडिया जिस तरह से सरकारों पर लगे आरोपों की सफाई मांगता रहता है कभी खुद पर उठे सवालों के जवाब भी दीजिए.. जनाब...
खैर..छोड़ो.. जो भी है..विरोध का तरीका ऐतिहासिक था.. इसके लिए....आपकी काबिलियत को सलाम..

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