मेरे गांव को चाहिए ‘आर्टस आफ लिविंग’

सुना है जिंदगी जीने की कला को सिखाया जा सकता है! वो भी यहीं अपने शहर में, आप यहां सभी कुछ सीख सकते हो, जैसे कैसे खुश रहें, कैसे काम को आसानी से करें, किस तरह से दूसरों को अच्छे मार्ग दिखाएं, कैसे लोगों को बताएं कि वो जीवन में बहुत कुछ कर सकते हैं लेकिन इसके लिए बशर्ते उन्हें जीने की कला आती हो। अगर नहीं आती है तो कोई बात नहीं सीख जाओगे। क्योंकि आप के शहरों में तो हमेशा इस तरह की कार्यशालाएं होती रहती हैं।
मेरी कुंठा का विषय यह है कि हमारे गांव के लोगों को जीने की कला नहीं सिखाई जा रही है। कभी-कभी तो हमको लगता है कि हो सकता है गांव के लोगों को जिंदगी जीने की कला आती है उन्हें किसी से सीखने ती जरूरत नहीं है। लेकिन फिर सोचते हैं कि यार अगर जीना ही आता होता तो आत्महत्या क्यों करते। तो मैं यही कहना चाहता हूं कि हमारे लोगों को भी सिखाओ क्या पता वो भी कर्ज वगैरा को भूल कर जिंदगी जीना सीख लें, फसल की चिंता करना छोंड़ दें, बेटिओं की चिंता करना छोंड़ दें, बच्चों की फीस की चिंता करना छोंड़ दें और हां फिर आत्महत्या करना छोंड़ दें। शहर के लोगों का क्या है वो तो वैसे भी इतना व्यस्त रहते हैं कि आपकी जीने की कला को सीखने के लिए वामुश्किल समय निकाल कर उपस्थिति दर्ज कराना पड़ता है। ऊपर से इतनी जल्दी में रहते हैं कि आपके लेक्चर को बोरिंग कहकर मजाक उड़ाते हुए पतली गली से निकल लेते हैं।
इसीलिए आप मेरे गांव के लोगों को सिखाओगे तो आपको भरपूर सहयोग मिलेगा। दुआएं भी मिलेंगी। वहां पर आप को किसी पुल को बनवाने के लिए सेना को नहीं बुलाना पड़ेगा, जिससे आप सरकार की फजीहत होने से बचा सकते हो, जुर्माने से भी बच सकते हो, इतना सारा अरेंजमेंट नहीं करना पड़ेगा। किसी खेत में तंबू गाड़ देना, खेंतों से वेमतलब फसल नहीं कटवानी पड़ेगी क्योंकि बहुत से बंजर खेत खाली पड़े रहते हैं और हां साफ-सफाई हम खुद कर लेंगे। किसी बड़ी नहर को प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकता है। क्योंकि नहरें होती ही नहीं हैं, अगर हैं भी तो नाले बन चुके हैं, और नाले भी हैं तो उनमें पानी नही है। कोई पार्किंग वगैरा का झंझट नही होगा क्योंकि साइकिल बहुत छोटा सा स्थान ग्रहण करती है। किसी तरह का प्रचार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी बस किसी भी बाजार में लोगों को बता देने फिर क्या पूरा क्षेत्र जान जाएग और हां भीड़ आपकी क्षमता के अनुकूल ही रहेगी। उद्घाटन के लिए किसी बड़े नेता या राष्ट्रपति जी को बुलाने की जरूरत नहीं होगी, आप किसी क्षेत्रीय नेता या चर्चित व्यक्ति (जिसने क्षेत्र के लोगों के बैंकों में जनधन योजना वाले खाते खुलवाए हों या आधार कार्ड बनवा दिया हो ) को बुला सकते हैं काफी है। कुल मिलाकर फायदे ही फायदे हैं अभी जो आप यहां करोड़ों खर्च कर रहे हो वहां हजारों में काम हो सकता है। ऊपर से आपका महिमामंडन इतना होगा कि आने वाली पीढ़ी याद रखेगी की हमारे यहां किसी बड़े भक्त ने प्रवचन दिया था। सुना है सूत्रों और प्रवचनों का अच्छा खासा असर होता है। तो अगर आप असली देशभक्त हो तो किसान भाइयों को जिंदगी जीने की कला सिखाओ क्योंकि आज कल देश का सबसे बड़ा नुकसान हो रहा है किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आपसे निवेदन है कि विदेश को बाद में देख लेना पहले अपने देश के लेगों को जीने की कला सिखाओ। अगर वाकई में लोगों पर असर हुआ तो सोचो कितना फायदा होगा। मेरे गांव को आर्ट्स आफ लिविंग सिखाओ!
अमित कुमार
भारतीय जनसंचार संस्थान

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