राय देने वाली प्रजाति का बढ़ता प्रकोप.....

आज कल तीन तरह के लोगों की संख्या ज्यादा तेजी से बढ़ रही है, राय चंद, राय बहादुर और राय सिंह। दरअसल इन तीनों प्रजातियां में एक कामन बात होती है कि यह सिर्फ राय देते हैं। लेकिन तीनों की राय में काफी अंतर होता है। तो शुरूआत करते हैं राय चंद से- यह वो लोग होते हैं जो खुद को सबसे ज्यादा ज्ञानी समझते हैं। यह खुद को अपनी प्रजाति में सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। इन्हें लगता है कि जो वो जानते हैं वो किसी को नहीं आता, यह लोग काफी उदार किस्म के होते हैं। लेकिन इनका यह उदारपन लोगों को सबसे ज्यादा परेशान करता है। यदि आप किसी काम में या परीक्षा में फेल हो जाओ या फिर नौकरी न मिल रही हो तो यह लोग आपके घर तक अपनी सेवा देने पहुंच जाते हैं। आपके घर वालों को तमाम राय देंगे जैसे कि आपका बेटा बहुत होशियार है वो बहुत समझदार भी है, फेल हो गया तो क्या हुआ जिंदगी थोड़ी न खत्म हो गई है, अभी तो शुरूआत है बहुत जल्दी सफतला की सीढ़ियां लांघने वाला है आपका बेटा। एक दिन आप कहोगे कि मैं (रायचंद) सही बोल रहा था। फिर (रायचंद जी) वो बात याद दिलवाएंगे जो शायद आपके घरवालों ने सोची तक न होगी कि ‘कुछ कहना मत लड़के से बच्चा ही तो है। वैसे भी आप तो जानते ही हो आजकल के लड़के घरवालों से गुस्से में आकर बहुत जल्दी गलत कदम उठा लेते हैं।‘....... अंतता अपना ज्ञान (राय) देने के बाद इधर-उधर देखते हैं कि कुछ खाने पीने को आ रहा है क्या। अगर कुछ खाने को नहीं दिया तो स्वत: ही बोल पड़ेंगे कि आज हमने सुबह नास्ते में फलानी चीज खायी थी। ऐसा इसलिए बोलते हैं ताकि वो आपको याद दिला सकें कि रायचंद जी की जीभ चटकारे मार रही है। खैर...
राय बहादुर जी, जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है कि यह बड़े ही बहादुर किस्म के लोग होते हैं तो जाहिर सी बात है राय भी बहादुरी से देते हैं। राय बहादुर जी भी रायचंद जी की तरह खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी समझते हैं, लेकिन इनकी राय या ज्ञान इनके झूंठे बनाए हुए अनुभव से जुड़ी होती है। यह हर बात खुद के अनुभव से जोड़कर बताते हैं कि हमने कहां-कहां झंडे गाड़े हैं और किस तरह से। इनकी राय सुनने के बाद आप पर दोहरा दबाव पड़ सकता है क्योंकि इनका प्रस्तुतीकरण गजब का होता है। राय सुनने के बाद घरवालों को लगेगा की बहादुर साहब ठीक बोल रहे हैं। हमारा लड़का ही मक्कार है। फिर घरवाले आप पर हमेशा बहादुर साहब का उदाहरण देकर तंज कसेंगे कि देखो बहादुर साहब किस तरह से झंडे गाड़े हैं, और तुम अभी तक कुछ नहीं कर सके। राय बहादुर को आप के घर की चाय-पानी से कोई खासा मतलब नहीं होता है उन्हें बस समय बिताने का एक जरिए चाहिए होता है क्योंकि यह अपने घर में कुछ काम-धंधा तो करते नहीं, तो सोचते हैं कि घरवालों की गाली सुनने से बेहतर है कि किसी दूसरे का दिमाग खपाया जाए वैसे भी इनकी खुद के घर में तो दाल गलने वाली नहीं। (दरअसल इस किस्म के लोग हरामखोर होते हैं)
राय सिंह जी, किसी शेर से कम नहीं समझते खुद को इसलिए इन्हें मैंने सिंह की उपाधि दी है। यह ज्यादतर चौक-चौराहों, गलियारों में खुद की सेखी बघारते मिल जाएंगे। यह एक जगह नहीं रुकते हमेशा अपने टारगेट की फिराख में चलते-फिरते रहते हैं। भले ही आपकी इन से बात-चीत न होती हो, हो सकता है आपका झगड़ा भी हो फिर भी यह अपनी राय आप तक पहुंचाकर ही मानेंगे। आपके घर के नजदीक से गुजरते वक्त किसी कुत्ते-बिल्ली पर या खुद के बच्चे को टारगेट करके आप तक अपनी राय पहुंचा ही देंगे। बेशर्मी इन से शरमाती है, आप या आपके परिवार का कोई सदस्य कहीं गांव के चौराहे पर खड़ा हो किसी बतिया रहा रहो हो तब भी यह पहुंच जाते हैं। और आप को टारगेट करके अपनी राय आप तक पहुंचा देते हैं। वैसे तारीफ करनी पड़ेगी इनकी क्योंकि यह बड़े ही निर्भीक किस्म के लोग होते हैं। यह बहस करने को हमेशा आतुर रहते हैं। और अगर आप ने इन्हें गलत साबित कर दिया तो फिर यह अपनी असली औकात पर आ जाते हैं, औकात पर आने का मतलब तो आप समझते ही हो।
कुल मिलाकर तीनों (रायचंद, रायबहादुर, रायसिंह) में खास है इनका अपनी बात (राय) प्रस्तुत करने का तरीका। यह लोग निरंतर मेहनत करते रहते हैं। यही कारण है कि यह बहुत जल्द ही अपना प्रभाव लोगों पर छोंड़ देते हैं। राय बांटने के प्रति लगन और मेहनत इन्हें खास बनाती है। अपनी बात को सही साबित करने के लिए ऐसे बनावटी उदाहरण पेश करते हैं कि लोग इन्हें सही समझने की भूल कर बैठते हैं। मेरा राय प्रजाति के लोगों से सविनय निवेदन है कि कृपया करके लोगों को पकाना छोंड़ दें। नहीं तो आज कल बहुत तीर उड़ रहे हैं कहीं धोखे से भी कोई उड़ता तीर आप ने ले लिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
अमित कुमार
भारतीय जनसंचार संस्थान

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