आधी रात का सच, और मेरा दुख


"मेरी हालत भी पीड़ित सुल्तान से बेहतर नहीं है। यह देखिए हांथ कंपकपाते हैं, चलने में दिक्कत होती है। चार कदम चलना दूभर है,चंदनगर कबाड़खाने के किराए के घर में रहता हूँ। बेटा मोहम्मद शफी मकैनिकी में जो कमा लाए, वही आमदनी का जरिया है। अभी जैसा सुल्तान ने बताया, मैं भी दिन भर मेहनत मजदूरी करता था। अपने बाजुओं पर बेहद भरोसा था, सोंचता था कि धीरे-धीरे अपनी बुनियाद मजबूत कर ही लूंगा। अब लगता है कि हमें ख्वाब नहीं देखने चाहिए। जब इस कदर टूटते हैं तो हम ख्वाब देकने लायक भी नहीं बचते। मैं सबसे कहता हूं कि ख्वाब मत देखो, कहीं किसी की नजर लग जाएगी"।
आज एक किताब पूरी पढ़ ली। 3 दिसम्बर को ही लाइब्रेरी से ले ली थी, लेकिन परीक्षा के चलते, और भी बहुत सी समस्याओं के कारण पढ़ने का मौका नहीं मिला। लेकिन अब जो पढ़ा वो स्तब्ध कर देने वाला है। किसी के दुख दर्द बांट तो नहीं सकते लेकिन महसूस जरूर कर सकते हो। किताब 📚 का नाम है "आधी रात का सच"। भोपाल गैस त्रासदी पर विजय मनोहर तिवारी की इकलौती हिंदी की किताब है जो भोपाल के पीड़ित लोगों की दास्ताँ बखूबी वयां कर रही है। किताब को पढ़ने के बाद लग रहा है कि अब से 30 32 साल पहले जो स्थिति सरकारों की थी उसमें तिनक सा भी फर्क नहीं पड़ा। कुछ नहीं हो सकता।

Comments