मेरी हालत भी पीड़ित सुल्तान से बेहतर नहीं है। यह देखिए हांथ कंपकपाते हैं, चलने में दिक्कत होती है। चार कदम चलना दूभर है,चंदनगर कबाड़खाने के किराए के घर में रहता हूँ। बेटा मोहम्मद शफी मकैनिकी में जो कमा लाए, वही आमदनी का जरिया है। अभी जैसा सुल्तान ने बताया, मैं भी दिन भर मेहनत मजदूरी करता था। अपने बाजुओं पर बेहद भरोसा था, सोंचता था कि धीरे-धीरे अपनी बुनियाद मजबूत कक ही लूंगा। अब लगता है कि हमें ख्वाब नहीं देखने चाहिए। जब इस कदर टूटते हैं तो हम ख्वाब देकने लायक भी नहीं बचते। मैं सबसे कहता हूं कि ख्वाब मत देखो, कहीं किसी की नजर लग जाएगी।
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