बहुत संभलने की जरूरत है

           
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आज फिर एक बार सोंचने पर मजबूर हुआ हूँ देश के उन युवाओं के बारे में जो इस देश की तकदीर हैं । हमोरे देस का प्रधानमंत्री आज डिजिटल इण्डिया से लेकर कौशल विकास योजना तक तमाम कार्यक्रम युवाओं को समर्पित कर उन्हें आगे ले जाने को प्रतिबद्ध नजर आ रहे हैं। लेकिन इन सबके बाबजूद भी युवाओं की हालत बहुत खराब है। ऐसा लग रहा है कि कहीं भटक से रहे हैं हम कहींं। यह सब मैं किसी के द्वारा सुनाया हुआ नहीं बल्कि आंखों देखा अनुभव शेयर कर रहा हूँ।
              भारतीय जनसंचार में कक्षाएं शुरू हुए अभी कोई तीन चार दिन हुए होंगे और जब कल सभी छात्रों का परिचय हुआ तो मैं दंग रह गया, कक्षा के लगभग 60-70 प्रतिशत छात्र ऐसी प्रष्ठभूमि से आए हैं जिनका दूर दूर तक मीडिया से कोई लेना देना नहीं है (प्रष्ठभूमि से अभिप्राय पढ़ाई  का वह क्षेत्र जिससे कभी प्रिय विषय बनाकर कोचिंग की थी) । इनमें ज्यादातर छात्र बी-टेक (इंजीनियंरिंग), फार्मेशी, कम्प्युटर साइंस आदि ऐसे क्षेत्रों से हैं जिनकी देश को सबसे ज्यादा जरूरत है, हां ऐसे में यदि कोई साहित्य या कला का छात्र मीिडया में आने की इच्छा रखता है तो यह एक अच्छी बात है लेकिन अगर कोई इंजीनियरिंग का या फार्मेशी या साइंस का छात्र मिडिया में भविष्य तलाश रहा है तो यह बहुत सोंचने योग्य बात है।
              इन छात्रों को देख के लगता है कि या तो इनके माता पिता ने इन पर जबरदस्ती थोपा है या फिर यह खुद अपने भविष्यके साथ खिलबाड़ कर रहे हैं। शायद इन्हें लगता है कि मीडिया की चमक धमक जो दिखती है वही वास्तव में है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मीडया ऐसा क्षेत्र है जो ऊपर से जैसा  दिखता है अंदर से भी वैसा ही हो। हमारे  देश में आज सबसे ज्यादातर जरूरत ऐसे युवाओं की है जो टेक्नोलाजी के बढ़ती मांग में देश की मदद कर सके। हम सभी जानते हैं कि हम पश्चिमी देशों की तुलना में तकनीकि में काफी पीछे हैं और इसके लिए हमें सबसे ज्यादा जरूरत है इन युवाओं की जो अपने नए नए आइडिया से व अपनी क्रिएटिविटी से शायद तकनीकि क्षेत्र कोई क्रान्ति ला सकते हैं। लेकिन इन लोगों का अपने कोर सब्जेक्ट को छोड़कर किसी ऐसे क्षेत्र में जाना जिसमें संभावनाएं वही हैं जो किसी भी अन्य क्षेत्र में, लेकिन साइंस, इंजीनियरिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को छोड़कर मीडिया में संभावनाएं तलाशना कोई ज्यादा उत्साह जनक कदम नहीं होगा।
           देश का दुर्भाग्य है कि जहां प्रधानमंत्री तकनीकि के क्षेत्र में युवाओं के आने का आग्रह कर रहे हैं इसके बाबजूद लोग कम ध्यान दे रहे हैं। हो सकता है कि सरकार जितना ढोल नगाड़े बजा जा रही है कि हम यह कर रहे है हम वो कर रहे हैं युवाओं के लिए और तख्त पर कुछ और ही हो रहा हो। इसके लिए भी सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। और इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरत है माँ बाप के रोल का मतलब कि अगर कोई भी बच्चा जो भी विषय को लेकर आगे बढ़ना चाहता है उसे पढ़ने दिया जाए। अपनी पसंद थोपने से बचना चाहिए।

अमित कुमार
यह मेरे अपने विचार हैं हो सकता है कि लोगों कि राय मुझसे बहुत अलग हो लेकिन मेरा यही मानना है कि आप मीडिया की चमक धमक को देख के अपने इंजीनियरिंग सरीके कोर्स को छोड़कर आते हैं तो यह कोई बहादुरी नहीं है।

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