एक समय था जब घर से बाहर जाने का दिल करता था, क्योंकि टीवी पर इस दुनिया के बारे में काफी सुना था कि बहुत बड़ी है यह दुनिया, बहुत सी चीजें हैं देखने लायक इस रंग भरी दुनिया में, शायद इसी ललक ने मुझे प्रेरित किया कि मैं जाऊं उस बाहरी दुनिया को देखने जो ऊपर से काफी रंगीन लेकिन अंदर से उतनी ही व्यस्त (आने के बाद पता चला) है। जब एक बड़े प्रतिष्ठत संस्थान में पढ़ने का मौका मिला तो दिल में काफी उत्साह हुआ के मैं शायद अपनी उन महत्वकांक्षाओं को पूरा कर सकूंगा जो मैं काफी समय से देखता आया हूं। और आज जब इस व्यस्त शहर में आ गया हूं तो बहुत अजीब सा लग रहा है। और इस अकेलेपन में जो चीज सबसे ज्यादा याद आती है वह है मां बाप का स्नेह प्यार दुलार जिससे अच्छी अच्छी बीमारी दूर हो जाती है। मेरा परिवार काफी भरा पूरा है। मेरे को सबसे ज्यादा याद उस नन्हीं जान की आती है जो हमेशा मेरे मोबाइल से लेकर सोशल साटस पर कवर पेज बना रहता है। मेरा भतीजा अरुष जो अभी पांच साल का भी नहीं हुआ है बहुत नटखट चंचल है। जब भी मैं घर पर रहता हूं हमेशा मुझसे चिपका रहता है। बस एक ही फरमाइश चाचा मेरे लिए मोदी कट लाना (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह का कुर्ता)। दरअसल में वह टीवी बहुत देखता है जससे उसे मोदी जी को बड़ी अच्छी तरह से पहचान लिया एक फैशन आइकोनिक की तरह। मैं जब भी कहीं जाता हूं तो बस एक ही रट लगाता रगाता रहता है चाचा मोदी कट लाना। मैं बेवकूफ अभी तक उसकी यह इच्छा पूरी नहीं कर सका। खैर हमारे बरेली में छोटे बच्चों के लिए कोई खास कपड़े मिलते भी नहीं तो यह भी एक कारण रहा कि मैं उसे मोदी कट कुर्ता नहीं ता सका। लिकन इस बार जब भी मैं जाउंगा तो उसके लिए मोदी कट कुर्ता लेकर जाऊंगा। कल जब उससे बात कर रही थी तो बोल रहा के चाचा कब आओगे जब भी आओ तो मेरे लिए कुर्ता जरूर लाना मतलब कि मेरी चोक लेता रहता है हमेशा। खैर में दिल्ली के एक एरिए बेर सराय में रहता हूँ। जब तक कॊलेज में रहता हूं तब तक तो थोड़ा व्यस्त होने के कारण दिन गुजर जाता है लेकिन जब शाम को घर जाता हूं तो थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि वहां कोई नही है जो मेरे को कोई फरमाइश सुना सके या फिर मेरे पास आकर जिद करने लगे कि चाचा मेरे यह दिला दो वो दिला दो मतलब बहुत सारी फरमाइशें। दूसरी नन्हीं जान है मेरी भतीजी अनुभी आठ साल की है गांव के ही प्राथमिक विध्यालय में पढ़ती है उसे भी बड़ी अजीबो गरीब फरमाइशें रहती हैं अभी दो में पढ़ती है लेकिन किताबें मागती है मेरी वाली दोने भाई बहन में इसी बात को लेकर झगड़ा होता रहता है कि चाचा कि किताबें मैं पढ़ूंगा या मैं पढ़ूंगी। दोस्तो आज जब अकेला मैं यह सब लिख रहा हूं तो मुझे मेरे परिवार की बहुत याद आ रही है। जिसे मैं सब्दों में बयां नहीं कर सकता। आज विभागाध्यक्ष महोदय ने एक असाइनमेंट दिया कि कोई भी विषय पर जाकर हिंदी में लिखो जिससे आपकी हिंदी टाइपिंग की गति बढ़ेगी व आपको फीचर लिखने का अनुबव भी बढ़ेगा।
एक समय था जब घर से बाहर जाने का दिल करता था, क्योंकि टीवी पर इस दुनिया के बारे में काफी सुना था कि बहुत बड़ी है यह दुनिया, बहुत सी चीजें हैं देखने लायक इस रंग भरी दुनिया में, शायद इसी ललक ने मुझे प्रेरित किया कि मैं जाऊं उस बाहरी दुनिया को देखने जो ऊपर से काफी रंगीन लेकिन अंदर से उतनी ही व्यस्त (आने के बाद पता चला) है। जब एक बड़े प्रतिष्ठत संस्थान में पढ़ने का मौका मिला तो दिल में काफी उत्साह हुआ के मैं शायद अपनी उन महत्वकांक्षाओं को पूरा कर सकूंगा जो मैं काफी समय से देखता आया हूं। और आज जब इस व्यस्त शहर में आ गया हूं तो बहुत अजीब सा लग रहा है। और इस अकेलेपन में जो चीज सबसे ज्यादा याद आती है वह है मां बाप का स्नेह प्यार दुलार जिससे अच्छी अच्छी बीमारी दूर हो जाती है। मेरा परिवार काफी भरा पूरा है। मेरे को सबसे ज्यादा याद उस नन्हीं जान की आती है जो हमेशा मेरे मोबाइल से लेकर सोशल साटस पर कवर पेज बना रहता है। मेरा भतीजा अरुष जो अभी पांच साल का भी नहीं हुआ है बहुत नटखट चंचल है। जब भी मैं घर पर रहता हूं हमेशा मुझसे चिपका रहता है। बस एक ही फरमाइश चाचा मेरे लिए मोदी कट लाना (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह का कुर्ता)। दरअसल में वह टीवी बहुत देखता है जससे उसे मोदी जी को बड़ी अच्छी तरह से पहचान लिया एक फैशन आइकोनिक की तरह। मैं जब भी कहीं जाता हूं तो बस एक ही रट लगाता रगाता रहता है चाचा मोदी कट लाना। मैं बेवकूफ अभी तक उसकी यह इच्छा पूरी नहीं कर सका। खैर हमारे बरेली में छोटे बच्चों के लिए कोई खास कपड़े मिलते भी नहीं तो यह भी एक कारण रहा कि मैं उसे मोदी कट कुर्ता नहीं ता सका। लिकन इस बार जब भी मैं जाउंगा तो उसके लिए मोदी कट कुर्ता लेकर जाऊंगा। कल जब उससे बात कर रही थी तो बोल रहा के चाचा कब आओगे जब भी आओ तो मेरे लिए कुर्ता जरूर लाना मतलब कि मेरी चोक लेता रहता है हमेशा। खैर में दिल्ली के एक एरिए बेर सराय में रहता हूँ। जब तक कॊलेज में रहता हूं तब तक तो थोड़ा व्यस्त होने के कारण दिन गुजर जाता है लेकिन जब शाम को घर जाता हूं तो थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि वहां कोई नही है जो मेरे को कोई फरमाइश सुना सके या फिर मेरे पास आकर जिद करने लगे कि चाचा मेरे यह दिला दो वो दिला दो मतलब बहुत सारी फरमाइशें। दूसरी नन्हीं जान है मेरी भतीजी अनुभी आठ साल की है गांव के ही प्राथमिक विध्यालय में पढ़ती है उसे भी बड़ी अजीबो गरीब फरमाइशें रहती हैं अभी दो में पढ़ती है लेकिन किताबें मागती है मेरी वाली दोने भाई बहन में इसी बात को लेकर झगड़ा होता रहता है कि चाचा कि किताबें मैं पढ़ूंगा या मैं पढ़ूंगी। दोस्तो आज जब अकेला मैं यह सब लिख रहा हूं तो मुझे मेरे परिवार की बहुत याद आ रही है। जिसे मैं सब्दों में बयां नहीं कर सकता। आज विभागाध्यक्ष महोदय ने एक असाइनमेंट दिया कि कोई भी विषय पर जाकर हिंदी में लिखो जिससे आपकी हिंदी टाइपिंग की गति बढ़ेगी व आपको फीचर लिखने का अनुबव भी बढ़ेगा।
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