ईर्ष्या : दूसरों को नहीं खुद को जलाती है..


ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस-नहस करता है औरों के जीवन में भी खलबली मचाता है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर जलिए मत।   यदि आपको खुश नहीं होना है न सही मत होइए खुश, किन्तु किसी की खुशियों को देखकर अपने आपको ईर्ष्या की आग में ना जलाएं। 
अक्सर समाज में देखा जाता है कि कोई आगे बढ़ रहा है,किसी की उन्नति हो रही है,  नाम हो रहा है किसी का अच्छा हो रहा है तो अधिकांश लोग ऐसे देखने को मिलेंगे जो पहले यह सोचेंगे, कैसे आगे बढ़ते लोगों की राह का रोड़ा बना जाए। उनको कैसे नीचा दिखाया जाए। कैसे समाज में उनकी मजाक बने और कैसे उनकी खुशियां छीनी जाए। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो किसी को आगे बढ़ता देख किसी की उन्नति होते देख आनंद  का अनुभव करते हैं या खुश होते हैं। आपको नहीं लगता कि हमें हमारी इर्ष्या जलाती है? बाद में सामने वाले का नुकसान होता है? क्यूंकि इर्ष्या करते वक़्त हमारे दिमाग के स्नायु सिकुड़ते हैं जिसका प्रभाव हमारे अंतर्मन पर पड़ता है और इसका प्रभाव हमारी दिनचर्या पर पड़ता है। हम चिड़चिड़े हो जाते हैं और घर के लोगों के साथ हमारा व्यवहार गलत ढंग का हो जाता   है तब घर का वातावरण कलहपूर्ण हो जाता है और हमारा स्वाभाव झगड़ालू हो जाता है और आप जानते ही हैं कि झगड़ालू लोग किसी को अच्छे नहीं लगते।
मेरा मानना है कि यदि आप किसी की खुशियों से खुश  होकर उसे और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देंगे तो इससे दो फायदे होंगे एक तो समाज में आपकी छबि अच्छी बनेगी दूजे आपको एक अंदरूनी खुशी का एहसास होगा और  एक सकारात्मक ऊर्जा का विकास अपने आप आपके अन्दर होगा।  
 
इसे इंसानी कमजोरी कह लीजिए या कुछ और पर सच यह है कि बहुत सारे दुखों का कारण हमारा अपना दुःख  ना होकर दूसरे की खुशी होती है। आप इससे ऊपर उठने की कोशिश कीजिए। आपको सिर्फ अपने आप को आगे बढ़ाते रहना है और व्यर्थ की तुलना के पचड़े में नहीं पड़ना है। तुलना नहीं करनी है।


Source:- Hindi Web Duniya

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