जल ही जीवन है एक सार्वभौमिक कथन है इसमे कोई दोराय नहीं, लेकिन यही जल आज कल जल रहा है बरेलियंस को. अगर सच्चाई देखि जाये तो सिर्फ बरेली ही नहीं बल्कि पूरे देश में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है. जहा पानी है वह पानी की अशुद्धता सबसे बड़ी समस्या है और जहा पानी नहीं है वह तो खुदा ही मालिक है।
कई वैज्ञानिक रिपोर्टो में खुलासा हो चूका है की शरीर में ज्यादातर बीमारिया पानी की अशुद्धता के कारन होती है, मूह से सम्बंधित ज्यादातर बीमारी पानी के प्रदूषित होने से होती है। हम सभी जानते है की सामान्य हैंडपंप से निकला पानी कितना शुध्द होता है, आज हमारा पूरा शहर पानी की समस्या से गुजर रहा है। कही कही तो लोग नहाने के लिए घंटो पानी का इंतज़ार करके बगैर नहाये ऑफिस चले जाते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की जब शहर के लोग पानी की गंभीर समस्या से गुजर रहे है तो गांव में क्या हाल होगा। हालाँकि गांवो में ज्यादातर लोगो के घरों में हैंडपंप लगे होते है लेकिन वह कितना शुध्द पानी देते है इसका अंदाजा तो गांव के बीमार लोगों को देख के लगाया जा सकता है। किसी किसी गांव में तो हैण्डपम्पो की भी कमी है। जिससे लोगों को एक ही हैंडपंप पर लम्बी लाइन लगा के पानी भरना होता है। गर्मियों में गांवों के ज्यादातर तालाब सूखने की कगार पर आ जाते है ऐसे में मवेशियों में भी बीमारी खतरा बढ़ जाता है क्योंकि मवेशी थोड़े से पानी में भी बैठ जाते है और प्यास लगाने पर फिर वही पानी पी भी लेते है जिससे बीमारी के बढ़ाने और भी बढ़ जाता है।
सरकार ने गांवो में तालाबों का निर्माण करवाया था लेकिन आज कितने तालाब कारगर है और कितने तालाब पानी दे रहे है वहाँ जा कर लगाया जा सकता है, सरकार ने मनरेगा के तहत करोड़ो रूपए खर्च किये तालाबों को खुदवाने में लेकिन तालाबों की दशा देखने लायक है कही कही तो तालाब खुद कर पट भी गए तो कही कही छोटा सा गढ्ढा बन कर रह गए है।
शहर से लेकर गांव तक हर जगह पानी की किल्लत है, सरकार विभिन्न पेयजल योजनाये चला रही है लेकिन इसका असर अभी बरेली या दूर दराज के गांवो में देखने को नहीं मिला। सरकार अगर वास्तव में चाहती है की नागरिको को बेहतर पानी पीने को मिले तो इसके लिए उसे भावी कदम उठाने की जरूरत है।
कई वैज्ञानिक रिपोर्टो में खुलासा हो चूका है की शरीर में ज्यादातर बीमारिया पानी की अशुद्धता के कारन होती है, मूह से सम्बंधित ज्यादातर बीमारी पानी के प्रदूषित होने से होती है। हम सभी जानते है की सामान्य हैंडपंप से निकला पानी कितना शुध्द होता है, आज हमारा पूरा शहर पानी की समस्या से गुजर रहा है। कही कही तो लोग नहाने के लिए घंटो पानी का इंतज़ार करके बगैर नहाये ऑफिस चले जाते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की जब शहर के लोग पानी की गंभीर समस्या से गुजर रहे है तो गांव में क्या हाल होगा। हालाँकि गांवो में ज्यादातर लोगो के घरों में हैंडपंप लगे होते है लेकिन वह कितना शुध्द पानी देते है इसका अंदाजा तो गांव के बीमार लोगों को देख के लगाया जा सकता है। किसी किसी गांव में तो हैण्डपम्पो की भी कमी है। जिससे लोगों को एक ही हैंडपंप पर लम्बी लाइन लगा के पानी भरना होता है। गर्मियों में गांवों के ज्यादातर तालाब सूखने की कगार पर आ जाते है ऐसे में मवेशियों में भी बीमारी खतरा बढ़ जाता है क्योंकि मवेशी थोड़े से पानी में भी बैठ जाते है और प्यास लगाने पर फिर वही पानी पी भी लेते है जिससे बीमारी के बढ़ाने और भी बढ़ जाता है।
सरकार ने गांवो में तालाबों का निर्माण करवाया था लेकिन आज कितने तालाब कारगर है और कितने तालाब पानी दे रहे है वहाँ जा कर लगाया जा सकता है, सरकार ने मनरेगा के तहत करोड़ो रूपए खर्च किये तालाबों को खुदवाने में लेकिन तालाबों की दशा देखने लायक है कही कही तो तालाब खुद कर पट भी गए तो कही कही छोटा सा गढ्ढा बन कर रह गए है।
शहर से लेकर गांव तक हर जगह पानी की किल्लत है, सरकार विभिन्न पेयजल योजनाये चला रही है लेकिन इसका असर अभी बरेली या दूर दराज के गांवो में देखने को नहीं मिला। सरकार अगर वास्तव में चाहती है की नागरिको को बेहतर पानी पीने को मिले तो इसके लिए उसे भावी कदम उठाने की जरूरत है।
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