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मुझे रोना इसलिए भी आ रहा है कि अब वो दिन वापस कभी नहीं आएंगे। जब भी नागपंचमी आती है। मुझे अपना गांव बहुत याद है। इस दिन गांव के सभी घरों में कोई बड़ा बुजुर्ग सुबह में दूध छिड़ता है। उसके बाद ही खाना खाने को मिलता है। सो कर उठता था तो सबसे पहले यही पूछता था कि मम्मी दूध छिड़क गया गया, बड़ी जोर की भूख लगी है। बाकी त्योहार होता है तो पकवान तो बनते ही हैं। इसलिए और भी इंतजार रहता था इस दिन का।
यह कोई एक दो घंटे का सेलीब्रेशन नहीं होता था बल्कि पूरे दिन और रात का भी हो जाता था। शाम में गांव के चारों ओर पघ्घार लगती थी। शायद अब भी लगती होगी पता नहीं। पघ्घार भी एक तरह की प्रथा है। इसमें गांव के चारो तरफ एक घड़े में पानी, दूध, लोबान और पता नहीं क्या-क्या पूजा का सामान मिलाकर परिक्रमा लगाया जाता है। घड़े से निकलता हुआ पानी खत्म नहीं होने पाए, इसीलिए हर चार कदम पर लोग बाल्टी में पानी लिए खड़े रहते हैं।
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गांव में मान्यता है कि पघ्घार लगाने से गांव में बीमारियां नहीं होती। और कोई विपदा भी नहीं आती। हालांकि मैं इस बात में विश्वास नहीं करता लेकिन देखने और साथ करने में बहुत मजा आता था। पूरा गांव एक साथ होता था। नागपंचमी के दिन गांव का कोई भी व्यक्ति जानवरों के लिए घास काटने तब तक नहीं जाता जब तक कि दूध न छिड़क जाए। लोगों को डर सताते रहता है नागदेवता का। पहले तो मुझे भी डर तलगता था, लेकिन अब हसी आती है। खैर जो भी हो गांव के लोग ही तो हैं जिनकी वजह से हमारी संस्कृतियां जिंदा हैं।
आज फ्रेंडशिप डे है। ऊपरवाले की दुआ से बड़े अच्छे दोस्त मिले हैं। खासतौर से मेरे रूम पार्टनर 'कम' दोस्त। पिछले कुछ दिनों से थोड़ा परेशान हूं लेकिन जब भी रूम पर आता हूं, सारी परेशानी दूर हो जाती है। यह कमीनें हैं ही ऐसे कुछ सोचने ही नहीं देते, बस बीसी करते रहते हैं। हसना जरूरी हो जाता है इनके सामने। फ्रेंडशिप डे क्यों मनाते हैं मुझे नहीं पता लेकिन हां इस खास दिन के लिए कोई एक दिन नहीं होना चाहिए और शायद है भी नहीं। क्योंकि दोस्त हमेशा साथ रहते हैं तो हर दिन फ्रेंडशिप डे होता है। थोड़ा सा भगवान में विश्वास रखता हूं इसलिए दुआ मानाऊंगा अपने दोंस्तों के लिए कि हमेशा ऐसे ही विश भेजते रहें और मुस्कुराते रहें।
अब घर जाना चाहता हूं। हो सकता है 15 अगस्त को चला भी जाऊं। लेकिन बस उसी दिने के इंतजार में महीनों गुजार दिए हैं अब बस कुछ दिन ही बचे हैं।
एक देहाती गंवार---
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