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हर बार की तरह इस
बार भी हम 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाने जा रहे हैं। देश भर में बहुत सारे
कार्यक्रमों का आयोजन भी होगा, बड़े-बड़े ब्लाग लिखे जाएंगे, समाचार पत्रों में
बड़े-बड़े दिग्गज लेखकों के लेख छपने शुरू हो जाएंगे, महिलाओं की मौजूदा स्थिति को
लेकर बड़े-बड़े भाषण दिए जाएंगे, हो सकता है नेता लोग कोई नई योजनाओं का ऐलान भी
कर दें तो कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि यह तो हमारे देश के नेताओं की फितरत है जब भी
कोई ऐसा अवसर उन्हें मिलता है उसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वैसे हम हमेशा
नेताओं को कोसते हैं, कभी खुद के अंदर झांक के देखा है? कि हमारी क्या सोच है
महिलाओं के प्रति, हम किस नजरिए से देखते हैं।?
आज के जनसत्ता में
बेटियों का कत्ल और कटघरे में अल्ट्रासाउंड हेडलाइन से एक खबर छपी है। खबर में
मेनका गांधी द्वारा लिंग जांच अनिवार्य करने संबंधी बयान को लेकर तेज हुई बहस की
जांच पड़ताल की है। हालांकि मेनका गांधी ने अपना बयान वापस ले लिया है। खबर में
प्रसव पूर्व भ्रूण के लिंग परीक्षण पर चल रही बहस के पक्ष और विपक्ष में दिए गए
तर्कों को लिखा है। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि कोई इसके पक्ष में कैसे हो
सकता है।? जो प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण के पक्ष में हैं उनका कहना है कि जब सबको मालूम
हो जाएगा की गर्भ में लड़की है तो चोरी छिपे इसका गर्भपात संभव नहीं होगा। अगर ऐसे
में किसी स्त्री का गर्भपात, कुपोषण, संक्रमण के कारण हो गया तो वो कैसे खुद को
सही साबित करेगी कि यह गर्भपात उसकी खुद की मर्जी से नहीं हुआ। और ऐसे में एक बात
समझ में नहीं आती है कि लिंग परीक्षण के पक्ष वाले लोग उन अस्पतालों पर भरोसा करने
को कह रहे हैं जिनके मेन गेट पर लिखा रहता है कि हमारे यहां लिंग परीक्षण नहीं किया
जाता ऐसा करना कानूनन अपराध है और जब पुलिस रेड पड़ती है तो अंदर कुछ और ही निकलता
है। इन्हें क्या लगता है कि हमारे देश के डाक्टर बहुत ईमानदार हैं?, बिल्कुल नहीं। इंडियन
मेडिकल एसोसिएशन ने भी प्रसव पूर्व लिगं परीक्षण का समर्थन किया है। आईएमए ने हाई
कोर्ट के उस फैंसले को अपनी जीत बताया है जिसमें कहा गया है कि पेट के ऊपरी हिस्से
का अल्ट्रासाउंड करने वाले डाक्टरों को पीसीपीएनडीटी एक्ट (गर्भधारण पूर्व और
प्रसूती पूर्व निदान तकनीक) के बाहर कर दिया गया है। ह्रदय और दूसरी बीमारियों के
डाक्टर इसका उपयोग आसानी से कर सकेंगे। इससे एक बात तो साफ हो जाती है भ्रष्ट
डाक्टरों का लिंग परीक्षण के लिए रास्ता खुल गया है। क्योंकि उन्हें एक बहाना मिल
गया है कि अब वो चाहें तो लिंग परीक्षण कर सकते हैं और पकड़े जाने पर बोल सकते हैं
कि हम तो पेट के ऊपरी हिस्से की जांच कर रहे थे।
अगर मान भी लो कि
लिंग परीक्षण अनिवार्य कर भी दिया जाए तो इसकी निगरानी कौन करेगा, इसके लिए बहुत
बड़े स्तर पर संसाधन और विशेषज्ञ चाहिंए होंगे। जनसत्ता ने खबर में लिखा है कि
मेडिकल लैंसेट के आंकड़ों के मुताबिक 1980 से 2010 के बीच देश में 1 करोड़ 20 लाख
कन्या भ्रूण की हत्या की गई। लेकिन भारतीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के
मुताबिक, पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत केवल 120 मामले दर्ज हुए जिनमें से मात्र 5
मामलों में ही सजा हो पाई। मैं उन लोगों से पूंछना चाहूंगा जो लिंग परीक्षण के
पक्ष में हैं कि उन्हें कौन से आंकड़े सही लगते हैं।? जो लोग महिलाओं को उनके हक
दिलाने की बात करते हैं वो मेरे हिसाब से अपना फायदा पहले सोच लेते हैं। क्योंकि
कागजों पर लिखना और जुबान से बोलना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। आपको लगता है कि आप
वाकई में कुछ कर सकते हो तो जिस तरह से देशभक्ति और देशद्रोह को लेकर बहस करते हो
कभी महिलाओं के मुद्दों पर भी उसी तरह की बहस कर लिया करो। 8 मार्च का दिन हमने
आधी आबादी को समर्पित तो कर दिया लेकिन उस आधी आबादी को अपने उस 8 मार्च के दिन को
सेलीब्रेट करने से कहीं न कहीं रोक रखा है।
अमित कुमार
भारतीय जनसंचार संस्थान
भारतीय जनसंचार संस्थान
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