अस्पताल हैं या दलाली, ठेंकेदारी के अड्डे....

डाक्टरों को हमारे समाज में भगवान का दर्जा दिया गया है, आस्थावादी लोग भगवान के बाद अगर किसी की प्रार्थना करते हैं तो वह डाक्टर है। लेकिन अगर वही डाक्टर अपने पेशे के विपरीत कार्य करे तो समाज का एक बड़ा तबका खुद को ठगा सा महसूस करता है। मैंने बचपन से ही अस्पतालों के दर्शन शुरू कर दिए थे, क्योंकि मेरी मां का लंबा इलाज चला इस दौरान मैं मां के साथ अस्पताल में रहा। लेकिन तब मैं न समझ था मुझे डाक्टरी पेशे के बारे में कुछ भी नहीं पता था। लेकिन अब जब अस्पतालों की दलालगिरी, और ठेंकेदारी को देखता हूं तो वही नासमझपन की कुछ बातें याद आ जाती हैं। क्योंकि उस समय भी इसी तरह की ठेंकेदारी चलती थी अस्पताल में, खुद के अस्पताल को इस्टेबलिश करने के लिए जो खेल खेला जाता था, और खेला जा रहा है उससे तो एक बात साफ नजर आती है कि कुछ बदला नहीं है।
अस्पताल से निकलने वाली दवाइयों की दुर्गंध मुझसे सहन नहीं होती है, इसीलिए मैं अस्पताल जाने से डरता रहता हूँ। लेकिन मजबूरी में जाना पड़ जाता है। अभी जनवरी में मेरी माँ के पेट का आपरेशन हुआ था, दरअसल माँ को सर्वीकल समस्या थी जिसके लिए आपरेशन ही एक मात्र उपाय बचा था। पहले तो आपरेशन के लिए हमने अपने पुराने जान-पहचान के एक डाक्टर हैं उन से बात की तो उन्होंने बताया की खर्चा लगभग 20-25 हजार के करीब हो जाएगा। उसके बाद हमारे पड़ोसी गांव के एक बिना डाक्टरी पढ़े-लिखे (आप उन्हें थैला छाप कह सकते हैं) लेकिन अनुभवी डाक्टर हैं उन से बात की तो उन्होंने बताया कि हम आपका आपरेशन 11 हजार में करवा देंगें कोई चिंता फिक्र की बात नहीं होगी डाक्टर अपनी जान पहचान का है। अब आप समझिए की किसी इंसानी जिंदगी की कीमत किस आधार पर तय की जा रही है, क्योंकि मुझे खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अगर एक जान पहचान का डाक्टर बोल रहा है कि 20-25 हजार में आपरेशन कर देंगे तो दूसरा बोल रहा है कि 11 हजार में वो भी मात्र 11 हजार में। खैर गांव के पड़ोसी और विश्वसनीय डाक्टर होनो के नाते 11 हजार वाले डाक्टर साहब की बात मान ली, यह भी सोच सकते हो कि कम पैसे खर्च होंगे इसलिए बात मान ली, लेकिन पूरा भरोसा दिया गया डाक्टर द्वारा कि आपके मरीज की पूरी देख-रेख की जाएगी। गांव से बरेली 30 किलेमीटर की दूरी पर है जहां आपरेशन के लिए जाना था। अगले दिन पहुंचे तो वहां के डाक्टर साहब ने चेक-अप वगैरा किया और फिर अगले दिन के लिए आपरेशन करने को बोल दिया उस पूरा दिन हमने अस्पताल में ही काटा। आपरेशन वाले दिन करीब 11 बजे डाक्टर साहब रूम में आए और मां को आपरेशन रूम में लेकर चले गए वो छड़ मेरी आंखों से अब भी दूर नही होता जब मां आपरेशन रूम की तरफ जाते वक्त रो रहीं थीं, क्योंकि उन्हें डर लग रहा था। खैर जब आपरेशन एक-डेढ़ घंटे बाद पूरा हो गया तो डाक्टर साहब बाहर निकले और जो भी पेट से निकाला वो मुझे दिखाते हुए अपने रूम में चले गए लेकिन उसके बाद जो मैंने देखा तो मेरे होश उड़ गए, नर्स मां को स्ट्रेचर पर लिटाकर बाहर ला रहीं थी, मां की दांती बज रही थी, उनकी आंखे खुली थीं लेकिन मुझे ऐसा लगा की वो कुछ देख नहीं पा रही थीं। बाहर रूम में बेड पर लिटाने के बाद डाक्टर, नर्स सभी दूसरे मरीजों को देखने चले गए या फिर कहीं बाहर ही टहल रहे थे मुझे इतना ध्यान नहीं है लेकिन मेरी हालत खराब हो रही थी क्योंकि मैंने अपनी मां को इससे पहले कभी इतनी पीड़ा में नहीं देखा था। और शायद मैं इस स्थिति में खुद को संभाल नहीं सकता। बड़े भाई को डाक्टर ने बाहर भेज दिया था किसी परचूनी दुकान से एक बड़ा डिब्बा लेने क्योंकि उस डिब्बे में वो पार्ट जांच के लिए जाना था जो मां के पेट से निकाला था।
जहां तक मुझे पता है कि बड़े आपरेशन बेहोश करने के बाद किए जाते हैं, मरीज को कुछ भी याद नहीं होता है कि उसके साथ क्या हुआ है। लेकिन यहां पर आपरेशन सिर्फ सुन्न करने के बाद किए जाते हैं, किसी प्रकार की कोई बेहोशी की दवा नहीं दी जाती। दरअसल इसके पीछे की बजह मुझे बाद में पता चली जिसकी बजह से मैं यह ब्लाग लिख रहा हूँ। बरेली में अस्पतालों की अच्छी खासी संख्या है, सब एक से बढ़कर एक फैसिलिटी देते हैं और जमकर लूट भी की जाती है, ऐसा माना जाता है कि अगर बरेली के डाक्टर मरीज को भर्ती करने से मना कर दें तो उसे या तो दिल्ली या फिर किसी विदेशी अस्पताल में ही भर्ती किया जा सकता है। कंपटीशन इतनी ज्यादा है बरेली में इसके बावजूद भी सभी अस्पताल खूब फल-फूल रहे हैं लगभग सभी का धंधा अच्छा चल रहा है हर जगह मरीजों की भीड़ रहती है, इसके पीछे कई कारण हैं। आजकल यहां दलाली और ठेंकेदारी का धंधा खूब फल-फूल रहा है। जो भी डाक्टर बन जाता है शहर आकर एक छोटा सा कमरा लेकर मल्टी सुपर स्पेशिआलिटी अस्पताल खोल देता है। ऐसे में ग्राहक (मरीज) नहीं आएंगे तो धंधा अच्छा नहीं चलेगा इसके लिए डाक्टर साहब शहर के नजदीक के किसी गांव के कम पढ़े लिखे व्यक्ति को अपना मैंनेजर नियुक्त कर लेते हैं। उस मैंनेजर का सिर्फ एक ही काम होता है कि किसी भी तरह ग्राहकों को अस्पताल लाए। मैनेजर भी कम नहीं होता है वो गांव-गांव जाकर थैला छाप डाक्टोरों से सम्बंध प्रगाढ़ करता है, और एक डील करता है कि अगर आप हमारे अस्पताल को मरीज दिलवाओगे तो हम आप को इसके लिए अपकी कमीशन देंगे। अब तो इस धंधे का दायरा और  भी बढ़ गया है, गांव के बेरोजगार लड़कों को हायर किया जा रहा है और उन्हें यह जोब दी जा रही है कि आप भी हमारे यहां मरीज लाकर कमा सकते हैं। कुल मिलाकर अस्पताल मैनेजर को ठेंका देता है, मैंनेजर खुद व दूसरे थैला छाप डाक्टरों के साथ मिलकर गांव के लड़कों से दलाली करवाते हैं। मेरे गांव के लड़के जो कभी स्कूल नहीं गए आज वो डाक्टरों के साथ बैठकर मरीजों को कनवेंस कर रहे हैं, उन्हें इंजेक्शन दे रहे हैं, दवाई दे रहे हैं, ऐसे में आप सोच सकते हैं कि कितना बढ़िया है हमारी चिकित्सा व्यवस्था। गांव के लोगों को फंसाने के लिए थैला छाप डाक्टर उन्हें सस्ते से सस्ता इलाज करवाने की गारंटी देते हैं। अब बेचारा किसान मजदूर जो हमेशा आज खाने के बाद कल की चिंता करने में लगा रहता है उसके लिए सस्ते इलाज की गारंटी किसी संजीवनी के मिलने जैसा होता है। लगभग सभी अस्पतालों में आपको ऐसे लोग दवाई लिखते मिल जाएंगे जिन्होनें कभी स्कूल का मूंह नही देखा होगा।
आपको सस्ते इलाज की गारंटी मिल जाती है और हां इसमें की दोराय नहीं है कि आपका इलाज भी सस्ता ही होता है लेकिन इलाज के दौरान आपके मरीज की देख-रेख, मरीज की संवेदनशालता का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। सस्ती से सस्ती दवाइयां दी जातीं हैं। डाक्टर भी तभी देखने आएगा जब कोई बहुत ही गंभीर समस्या होगी अन्यथा कम्पाउंडर ही आएगा और डाक्टर वाला सारा काम बड़ी होशियारी से कर के चलता बनेगा। आप चाहें कितने भी पढ़े लिखे होशियार क्यों न हों आप कुछ नहीं कर सकते अगर एक बार आपका मरीज भर्ती हो गया। आपरेशन के बाद मेरी मां को बहुत दर्द हो रहा था जब मैंने डाक्टर से कहा कि आपरेशन के लगभग दो-तीन घंटे तक तो मरीज को होश ही नही रहता है, लेकिन मेरी मां आपरेशन रूम से निकलने के बाद से ही दर्द से चिल्ला रही हैं आप कोई इंजेक्शन क्यों नहीं देते ताकि दर्द से राहत मिल सके। मेरा इतना कहने का बाद डाक्टर साहब हमसे कहते हैं कि आप कहीं और ले जा सकते हैं, हमने दवाई दे दी है दर्द रुकेगा लेकिन समय लगेगा। अब हमें ज्यादा तंग न करें। सोचो जिस डाक्टर के हवाले पूरी जिंदगी सौंप दी हो और वो बोल रहा है कि आप कहीं दूसरी जहग ले जा सकते हैं। दरअसल गांव के जो थैलाछाप डाक्टर मरीज को भेजते हैं तो उनसे पहले ही तय कर लिया जाता है कि आप का आपरेशन इतने रुपए में होगा। फिर उसी हिसाब से आपरेशन करने वाला डाक्टर भी कम खर्चे में इलाज करने की कोशिश करता है, और इसी ठेंके के चलते मरीज बेहतर इलाज से बंचित रह जाता है।
नोट- यह मेंरे अपने विचार हैं क्योंकि मैं भुक्तभोगी हूं, और आपसे भी यही निवेदन करता हूँ कि जहां तक हो सके इस दलाली और ठेंकेदारी के नासूर को डाक्टरी जैसे पवित्र पेशे में न घुसने दें।
अमित कुमार

भारतीय जनसंचार संस्थान

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